Khaala

एक माँ थी मेरी
जिसके बेटे जैसा था मै
कल करवट लेकर सो गयी

दूर था
पर मिल सकता था
अब काफी दूरी हो गयी

गुब्बारे से हाथों को
अक्सर फेरा करती थी
दुआएं और आंसू
भर भर बिखेरा करती थी

तीलियों में ऊन फसाए
न जाने कितने स्वेटर बनाये थे
फांस ले ठण्ड को ऐसे गरम जाल बिछाये थे

गाने गाकर उसके पाँव अक्सर दबाया करता था
अपने वज़न का ज़ोर उसकी दर्द भरी ऐड़ी पर लगाया करता था

खुश होकर कहती थी बेटा वैसे पाँव दबा दो
आज पिंडलियाँ बहोत दुख रही हैं
थोड़ा सुकून पहोंचा दो

अब दुख गया
दर्द से निजाद भी मिल गयी

जो सोचते थे मुश्किलें बढ़ा देगी तू
उनकी सारी मुश्किल गयी

शुक्र है




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