waapsi

बड़ा वख्त लगा खुद को याद दिलाने में
कुछ लफ्ज़ पड़े हैं सीले हुए नेमतखाने में

सोचा धूप दिखा दूँ
थोड़ी सीलन हटा दूँ

अब कलम कम चलता है
बातें ज्यादा होने लगी हैं

जो छपते हैं
वो बिक जाते हैं सिक्को के भाव
आज मंडी में हर चीज़  का खरीदार खड़ा है

ये तो ज़हन पर दिल की तम्बी जारी है
वर्ना बिक जाएँ जज़्बात ऐसा बेशरम बाज़ार खड़ा है

जो अब तक नहीं छपे हैं वो इकठ्ठा हो रहे हैं
बस एक डर है नेमत्खाना कहीं भर न जाए

सील कर ख्यालों की सियाही का रंग
कहीं ज़हन की पुरानी होती किताब से उतर न जाए......


Comments

saifr said…
Ufff kya Baat hai -saif R
saifr said…
Kya Baat hai ... Well versed

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