नाचता डोलता हर बात से अनजान
वो देखो जा रहा है सचा इंसान
इसकी खाट हो या उसकी कुर्सी
सबकी बेमकसद मिज़ाजपुर्सी
पल के लिए बैठे
पहरों चलता जाए
फुटपाथ वो बिस्तर जहाँ अगोंछा बिछाये
वख्त और घड़ियों से कोई नाता नही
दो वख्त की रोज़ी वो कमाता नही
फ़िर भी किसी रात वो भूका नही सोता है
रोज़ उसकी रहनुमाई के लिए खुदा ज़रूर होता है..
वो देखो जा रहा है सचा इंसान
इसकी खाट हो या उसकी कुर्सी
सबकी बेमकसद मिज़ाजपुर्सी
पल के लिए बैठे
पहरों चलता जाए
फुटपाथ वो बिस्तर जहाँ अगोंछा बिछाये
वख्त और घड़ियों से कोई नाता नही
दो वख्त की रोज़ी वो कमाता नही
फ़िर भी किसी रात वो भूका नही सोता है
रोज़ उसकी रहनुमाई के लिए खुदा ज़रूर होता है..
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