याद करो सबसे दीवानी हरकत क्या की होगी

किस पल तुमने ज़िन्दगी ज़ोर से जी होगी,

सोते सोते बचपन में अपना गाल खरोंचा था

या गोद में अपनी दादी का झुमका ज़ोर से नोचा था,

खेलते खेलते लोहे का सिक्का निगला था

या उतरते वख्त बीस्न्वी सीड़ी से बैठ के फिसला था,

मास्टर जी की संटी छुपा कर भोले बन गए थे

या लोट लोट के कीचड़ में पूरा सन गए थे,

पहली इश्क के झोंके ने बहोत पिटवाया था

या फ़ोन पर सास को प्रेमिका समझ कर हाल-ऐ-दिल बताया था,

बीवी को पहली शौपिंग कराते वख्त बटुआ भूल आए थे

या बच्चों की परेंट्स मीटिंग में जाकर टीचर से लड़ आए थे,

ऐसे न जाने और कितने इत्तेफाक कहाँ कहाँ हो जाते हैं

वख्त के साथ याद बन कर इधर उधर खो जाते हैं,

कहीं कहीं कुछ तो कमाल तुमने भी किया होगा

ख़याल है मेरा ज़िन्दगी को तुमने कभी तो जिया होगा...

Comments

Unknown said…
Aneko baar.
Sonia said…
saw your blog after a long time, and this poem made me regret for it. nicely written, and I still maintain my loud request - consider being a professional writer for the Indian film industry...achha likhne walon ki bohot kami hai

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