एक मुलाक़ात हुई थी मेरी कामयाबी से

धुंद के बक्से में बंद उस दुन्याबी से

शेहेर के सबसे महंगे इलाके में एक दस माले की इमारत थी

जहाँ बैठे हर शख्स को अपने काम में माह्रत थी

बिल्डिंग में दाखिल होते ही कंप्कंपी से आने लगी

रिसेप्शन पर बोलते वख्त जुबां लड़खडाने लगी

बमुश्किल आधे लफ्जों में आरज़ू बताई

तभी सामने बैठी रिसेप्शनिस्ट फरमाई

होगी मुलाक़ात जो appointment होगा

boss की रजामंदी का स्टेटमेंट होगा

तब मैंने उसके हाथों में एक पर्चा थमाया

पढ़कर जिसे उसने टेलीफोन घुमाया

इशारे से फ़िर मुझे लिफ्ट दिखाकर

कहा जाओ दसवें माले पर visitor card थमाकर

लड़खादाता घबराता मैं lift में समाया

दसवें माले का मैंने खटका दबाया

धीरे धीरे ऊपर चढ़ता जा रहा था

रहा आवाजों का शोर बढ़ता जा रहा था

दरवाज़ा खुलते ही एक रेला आया

मेरे सामने कामयाबी का मेला आया

हर शख्स जल्दी में भाग रहा था

सोते सोते जाग रहा था

कहीं मज़ाक का शोर था

तो कहीं डांट का ज़ोर था

कोई खाते खाते काम कर रहा था

कोई कुर्सी पर बैठकर आराम कर रहा था

इन सबके सरदार से इंटरव्यू था मेरा

जो मुझको दिलाता उस दफ्तर में बसेरा

सबकी मसरूफियत देखकर हिम्मत खो रही थी

सरदार की जगह जानने में झिझक हो रही थी

नज़रे दौड़ाने पर एक केबिन नज़र आया

पहोंच कर मैंने उसका door खटखटाया

अन्दर जाकर जो देखा वो और भी अजीब था

उस दिन मै शायद सबसे बदनसीब था

गुस्से में किसी पर वो ज़ोर से बरस रहा था

और सामने बैठा एक आदमी मूँ छुपा कर हस रहा था

भेजकर उसे बाहर मुझे बैठने को कहा

मेरी घबराहट की तब तक हो चुकी थी इमतिहा

जाने फिर क्या सवाल जवाब हुए

उस कंपनी के चर्चे बेहिसाब हुए

तफ्सीली बात तो मुझको याद नहीं

बस नतीजा ये था की मै ग़लत और वो सही

और ये की मुझे काम सीखने में बरसों लग जायेंगे

इन बरसों में मुझे हालात आजमायेंगे

तब कहीं जाकर वो काबलियत आयेगी

जो मुझे उस कंपनी के लायक बनाएगी

अभी मेरी भर्ती थोड़ी मुश्किल है

वो नौकरी मेरे मुकाबले ज़्यादा काबिल है

सुन कर सारी बात मै वापस गया

मेरे सपनो पर जैसे अँधेरा छा गया

आज जब भी वो मंज़र मै याद करता हूँ

खुदा से बस ये ही फरियाद करता हूँ

की जिसने भी उस कामयाबी का सपना देखा हो

उसे जल्द से जल्द वो सच्चाई दिखा देना

दुनिया असल में कैसे चलती है ज़रा बता देना

वरना ग़लत रास्ते में मेहनत करके वो वख्त ज़ाया करेगा

मेरी ही तरह हर कदम उठाने से पहले डरेगा

वहां वो चमकता है जो शोर मचाता है

की उसको अपना काम कितने अच्छे से आता है

तो काम भी करो और शोर भी मचाओ

छोटे से छोटे मौके का फायदा उठायो

तब जाकर वो ऊंट पहाड़ के नीचे आयेगा

तब कोई सरदार की कुर्सी पर बिठाएगा

वो कुर्सी एक धुंद के बक्से में बंद होगी

जहाँ फटाफट तुम्हारी किस्मत बुलंद होगी

ये धुंद उन शीशों की है जो बॉस के केबिन में होते हैं

जिसकी आड़ में रोज़ ऐसे इंटरव्यू होते हैं

जहाँ मैं,तुम और जाने कितने जाते हैं

और अपनी -अपनी किस्मत आज़माते हैं

शुरुआत सबकी ऐसी ही होती है

पहली मुलाक़ात कामयाबी से छोटी ही होती है....

Comments

Bhawana said…
Its a good one...kafi soch soch k likha hai it seems?
Sonia said…
gazab likha hai...how true! i too have felt like this many a times, I've felt like changing my career to something more easier, where I would not be a misfit or need centuries just to be 'eligible' to dream

and then I realized, there is no such alternative (atleast in the creative industry we are)..

....so let's continue what we're doing. artists need patience, the most!

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