अब खामोष होकर बस देखता हूँ
बुझे हुए चूल्हे पर अपने अरमान सेंकता हूँ ,
झूठ जीने की जबसे मुझे आदत लगी है
सच के दरख्त के सूखे हुए पत्ते समेटता हूँ ,
उन्हें जलाकर मुकम्मल झूठा बन जायुन्गा
कुछ नहीं तो कम से कम दोग्ला न कह्लायुन्गा .
बुझे हुए चूल्हे पर अपने अरमान सेंकता हूँ ,
झूठ जीने की जबसे मुझे आदत लगी है
सच के दरख्त के सूखे हुए पत्ते समेटता हूँ ,
उन्हें जलाकर मुकम्मल झूठा बन जायुन्गा
कुछ नहीं तो कम से कम दोग्ला न कह्लायुन्गा .


Comments
aur waise bhi dekha jaye the only person u can lie to is urself.. baaki to sab apni hi kehtey hain..
waise jagjit singh ji ki ek ghazal ki kuch lines yahan dohrati hun..
"sach ghatey yah bardhey to sach na rahey..
sach ghatey yah bardhey to sach na rahey..
jhooth ki koi inteha hi nahi..."