सर्द हवाएं आज कल िहम्मत तोड़ देती हैं

उमीदें मुकम्मल होने की हसरत छोड़ देती हैं ,


जब भी िनकलता हूँ इरादों का झोला लेकर

थोड़ी दूर चलते ही वज़न बर्दाश्त नहीं होता ,


अंधेरों में ठोकर खायुं तो शायद कुछ अंदाज़ हो

रौशनी में चौनि्धयाने से अब ऐतराज़ नहीं होता

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